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रा॒र॒न्धि सव॑नेषु ण ए॒षु स्तोमे॑षु वृत्रहन्। उ॒क्थेष्वि॑न्द्र गिर्वणः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rārandhi savaneṣu ṇa eṣu stomeṣu vṛtrahan | uktheṣv indra girvaṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

र॒र॒न्धि। सव॑नेषु। नः॒। ए॒षु। स्तोमे॑षु। वृ॒त्र॒ह॒न्। उ॒क्थेषु॑। इ॒न्द्र॒। गि॒र्व॒णः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:41» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गिर्वणः) वाणियों से जिससे याचना करें वह (वृत्रहन्) धनों से युक्त (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य्य के देनेवाले ! आप (स्तोमेषु) प्रशंसा करने और (उक्थेषु) कहने को योग्य (सवनेषु) ऐश्वर्य्यों में (नः) हम लोगों को (रारन्धि) रमाओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - दरिद्र लोगों को चाहिये कि धनयुक्त पुरुषों से सदा याचना करें, जिससे कि वे दरिद्र लोग सुख को प्राप्त होवें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे गिर्वणो वृत्रहन्निन्द्र त्वं स्तोमेषूक्थेषु सवनेषु नोऽस्मान् रारन्धि ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रारन्धि) रमस्व रमय वा (सवनेषु) ऐश्वर्येषु (नः) अस्मान् (एषु) (स्तोमेषु) प्रशंसनीयेषु (वृत्रहन्) प्राप्तधन (उक्थेषु) वक्तुमर्हेषु (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (गिर्वणः) यो गीर्भिर्वन्यते याच्यते तत्सम्बुद्धौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - दरिद्रैर्धनाढ्याः सदैव याचनीया यतस्ते सुखमाप्नुयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - दरिद्री लोकांनी धनयुक्त पुरुषाची सदैव याचना करावी, ज्यामुळे दरिद्री लोकांना सुख मिळेल. ॥ ४ ॥